जिन्न Poetry (page 20)

जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं

राही मासूम रज़ा

तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे

राहील फ़ारूक़

कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के

इरफ़ान सत्तार

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है

इरफ़ान सत्तार

हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है

इरफ़ान सत्तार

एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं

इरफ़ान सत्तार

चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है

इरफ़ान सत्तार

ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया

इरफ़ान सत्तार

अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है

इरफ़ान सत्तार

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

इरफ़ान सत्तार

आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ

इरफ़ान सत्तार

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

हर कसी को कब भला यूँ मुस्तरद करता हूँ मैं

इक़बाल साजिद

गर्दिशों में भी हम रास्ता पा गए

इक़बाल सफ़ी पूरी

कितने ही लोग दिल तलक आ कर गुज़र गए

इक़बाल मतीन

वो आ रहे हैं वो जा रहे हैं मिरे तसव्वुर पे छा रहे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

नज़र जिन की उलझ जाती है उन की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ से

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं

इक़बाल अज़ीम

मिले वो दर्स मुझ को ज़िंदगी से

इक़बाल आबिदी

काम आ गई है गर्दिश-ए-दौराँ कभी कभी

इक़बाल आबिदी

ये जो मुझ से और जुनूँ से याँ बड़ी जंग होती है देर से

इंशा अल्लाह ख़ान

यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में

इंशा अल्लाह ख़ान

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे

इंशा अल्लाह ख़ान

मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे

इंशा अल्लाह ख़ान

किनाया और ढब का इस मिरी मज्लिस में कम कीजे

इंशा अल्लाह ख़ान

बंदगी हम ने तो जी से अपनी ठानी आप की

इंशा अल्लाह ख़ान

दिल की राहों से दबे पाँव गुज़रने वाला

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

यही फ़साना रहा है जुनूँ के सहरा में

इन्दिरा वर्मा

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