जिन्न Poetry (page 18)
रक्खो ख़िदमत में मुझ से काम तो लो
रिन्द लखनवी
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
रिन्द लखनवी
हैरान सी है भचक रही है
रिन्द लखनवी
दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे
रिन्द लखनवी
चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा
रिन्द लखनवी
आज इंकार न फ़रमाइए आप
रिन्द लखनवी
नादान दिल-फ़रेब मोहब्बत न खा कभी
रिफ़अत सुलतान
ना-आश्ना-ए-दर्द नहीं बेवफ़ा नहीं
रिफ़अत सुलतान
मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन
रिफ़अत सुलतान
यही दुआ है यही है सलाम इश्क़ ब-ख़ैर
रहमान फ़ारिस
कोई जादू न फ़साना न फ़ुसूँ है यूँ है
रेहाना रूही
दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ
रज़िया फ़सीह अहमद
मैं हूँ मेरी चश्म-ए-तर है रात है तंहाई है
राज़िक़ अंसारी
कोह-ए-ग़म इतना गराँ इतना गराँ है अब के
रज़ी रज़ीउद्दीन
दहका पड़ा है जामा-ए-गुल यार ख़ैर हो
रज़ी रज़ीउद्दीन
कैसे इस शहर में रहना होगा
राज़ी अख्तर शौक़
जो ख़ुद न अपने इरादे से बद-गुमाँ होता
रज़ा लखनवी
ये बात तिरी चश्म-ए-फुसूँ-कार ही समझे
रज़ा जौनपुरी
उन की निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल कहें जिसे
रज़ा जौनपुरी
जिंस-ए-गिराँ का मैं हूँ ख़रीदार दोस्तो
रज़ा जौनपुरी
झुक सके आप का ये सर तो झुका कर देखें
रज़ा जौनपुरी
मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है
रज़ा हमदानी
ऐसा किसी से जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ न हो
रज़ा अज़ीमाबादी
यार के रुख़ ने कभी इतना न हैराँ किया
रज़ा अज़ीमाबादी
दिल में झाँका तो बहुत ज़ख़्म पुराने निकले
रज़ा अमरोही
दिल बता और क्या है होने को
रज़ा अमरोही
ख़ल्वती-ए-ख़याल को होश में कोई लाए क्यूँ
रविश सिद्दीक़ी
कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ
रविश सिद्दीक़ी
हुस्न-ए-असनाम ब-हर-लम्हा फ़ुज़ूँ है कि नहीं
रविश सिद्दीक़ी
हम मय-कशों के क़दमों पर अक्सर
रविश सिद्दीक़ी
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