ऐसा किसी से जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ न हो
चाक-ए-गरेबाँ का भी चाक गरेबाँ किया
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किस लिए सहरा के मुहताज-ए-तमाशा होजिए
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ
हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाक
इश्क़ की बीमारी है जिन को दिल ही दिल में गलते हैं
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ के
हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम
चला है काबे को बुत-ख़ाने से 'रज़ा' यारो
जिस तरह हम रहे दुनिया में हैं उस तरह 'रज़ा'
ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़
सौ ग़म्ज़े के रखता है निगहबान पस-ओ-पेश
इमारत दैर ओ मस्जिद की बनी है ईंट ओ पत्थर से