ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़
आगे ये ख़ाना-ए-दिलचस्प हवा दार न था
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(512) Peoples Rate This
ख़ुशा हो कर बुताँ कब आशिक़ों को याद करते हैं
उस घड़ी कुछ थे और अब कुछ हो
ऐ बुत-ए-ना-आश्ना कब तुझ से बेगाने हैं हम
जिस तरह हम रहे दुनिया में हैं उस तरह 'रज़ा'
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
इक दम के वास्ते न किया क्या क्या ऐ 'रज़ा'
भर नज़र देखेंगे हम उस को मिला जानाँ अगर
सुनते तो थे 'रज़ा' हैं सब हैं बड़े मुसलमाँ
टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा
ज़ुल्फ़ खोले था कहाँ अपनी वो फिर बेबाक रात
अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम
जब उठे तेरे आस्ताने से