ख़ुशा हो कर बुताँ कब आशिक़ों को याद करते हैं
'रज़ा' हैराँ हूँ मैं किस बात पर है उतना भोला तू
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अब्र है अब्र है शराब शराब
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में
ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़
उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया
मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से
सौ ईद अगर ज़माने में लाए फ़लक व-लेक
अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम
हम मर गए प शिकवे की मुँह पर न आई बात
आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं
टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा
नाज़ का मारा हुआ हूँ मैं अदा की सौगंद