ख़्वाह काफ़िर मुझे कह ख़्वाह मुसलमान ऐ शैख़
बुत के हाथों में बिका या हूँ ख़ुदा की सौगंद
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अब्र है अब्र है शराब शराब
गुल-ए-उश्शाक़ रंग-ए-बाख़्ता है
भर नज़र देखेंगे हम उस को मिला जानाँ अगर
क्या न-दीदों से ज़माने को सरोकार है आज
मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ
यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया
ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़
हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम
शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का
हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाक
यारब तू उस के दिल से सदा रखियो ग़म को दूर
इलाही चश्म-ए-बद उस से तू दूर ही रखियो