किस तरह 'रज़ा' तू न हो धवाने ज़माना
जब दिल सा तिरी बैठा हो बदनाम बग़ल में
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तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम
टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा
वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ
हाथ उस के न आया दामन-ए-नाज़
इमारत दैर ओ मस्जिद की बनी है ईंट ओ पत्थर से
हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाक
रफ़ू फिर कीजियो पैराहन-ए-यूसुफ़ को ऐ ख़य्यात
टुक बैठ तू ऐ शोख़-ए-दिल-आराम बग़ल में
बुतों को फ़ाएदा क्या है जो हम से जंग करते हैं
यार के रुख़ ने कभी इतना न हैराँ किया
सुनते तो थे 'रज़ा' हैं सब हैं बड़े मुसलमाँ