इमारत दैर ओ मस्जिद की बनी है ईंट ओ पत्थर से
दिल-ए-वीराना की किस चीज़ से तामीर होती है
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(496) Peoples Rate This
हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम
क्या कहें अपनी सियह-बख़्ती ही का अंधेर है
मेरे नाले पर नहीं तुझ को तग़ाफ़ुल के सिवा
ऐसा किसी से जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ न हो
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ के
काबे में शैख़ मुझ को समझे ज़लील लेकिन
क्या न-दीदों से ज़माने को सरोकार है आज
यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया
हम मर गए प शिकवे की मुँह पर न आई बात
ऐ बुत-ए-ना-आश्ना कब तुझ से बेगाने हैं हम
आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं
ख़्वाह काफ़िर मुझे कह ख़्वाह मुसलमान ऐ शैख़