इस चश्म ओ दिल ने कहना न माना तमाम उम्र
हम पर ख़राबी लाई ये घर ही की फूट-फाट
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यारब तू उस के दिल से सदा रखियो ग़म को दूर
अब्र है अब्र है शराब शराब
अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम
यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया
नौ-मश्क़-ए-इश्क़ हैं हम आहें करें अजब क्या
चला है काबे को बुत-ख़ाने से 'रज़ा' यारो
निकल मत घर से तू ऐ ख़ाना-आबाद
वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ
ज़ुल्फ़ खोले था कहाँ अपनी वो फिर बेबाक रात
मेरे नाले पर नहीं तुझ को तग़ाफ़ुल के सिवा
हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम
उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया