अब्र है अब्र है शराब शराब
साक़िया साक़िया शिताब शिताब
नामा लिखता हूँ और कहे है शौक़
क़ासिदा क़ासिदा जवाब जवाब
यार बिन अपनी ज़िंदगी ऐ ख़िज़्र
मौत है मौत है अज़ाब अज़ाब
ये 'रज़ा' ने ग़ज़ल कही इस का
शाइराँ शाइराँ जवाब जवाब
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हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम
यारब तू उस के दिल से सदा रखियो ग़म को दूर
ग़ैरों का उस तरफ़ से गुज़ारा न जाएगा
सुनते तो थे 'रज़ा' हैं सब हैं बड़े मुसलमाँ
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ के
ऐ बुत-ए-ना-आश्ना कब तुझ से बेगाने हैं हम
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
इक दम के वास्ते न किया क्या क्या ऐ 'रज़ा'
हम मर गए प शिकवे की मुँह पर न आई बात
लाज़िम है बुलंद आह की रायत न करे तू
जब उठे तेरे आस्ताने से
टुक बैठ तू ऐ शोख़-ए-दिल-आराम बग़ल में