सौ ईद अगर ज़माने में लाए फ़लक व-लेक
घर से हमारे माह-ए-मुहर्रम न जाएगा
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(507) Peoples Rate This
ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़
काबे में शैख़ मुझ को समझे ज़लील लेकिन
जिस तरह हम रहे दुनिया में हैं उस तरह 'रज़ा'
गुल-ए-उश्शाक़ रंग-ए-बाख़्ता है
ज़ुल्फ़ खोले था कहाँ अपनी वो फिर बेबाक रात
मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ
गर गरेबाँ सिया तो क्या नासेह
ऐ बुत-ए-ना-आश्ना कब तुझ से बेगाने हैं हम
वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ
हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाक
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया