बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(653) Peoples Rate This
फिर मुझे ले चला उधर देखो
महफ़िल में शोर-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना-ए-मुल हुआ
बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर
शुक्र पर्दे ही में उस बुत को हया ने रक्खा
तू जान है हमारी और जान है तो सब कुछ
चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए
मज़ा था हम को जो लैला से दू-ब-दू करते
दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में
कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे
तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से
देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'