मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'
ख़ुदा जाने किधर का चाँद आज ऐ माह-रू निकला
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(602) Peoples Rate This
बाक़ी है दिल में शैख़ के हसरत गुनाह की
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
राहत के वास्ते है मुझे आरज़ू-ए-मर्ग
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
मज़ा था हम को जो लैला से दू-ब-दू करते
हक़ ने तुझ को इक ज़बाँ दी और दिए हैं कान दो
हाथ सीने पे मिरे रख के किधर देखते हो
याँ लब पे लाख लाख सुख़न इज़्तिराब में
हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले