बाक़ी है दिल में शैख़ के हसरत गुनाह की
काला करेगा मुँह भी जो दाढ़ी सियाह की
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नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुनिया-दार
जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा
सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
याँ लब पे लाख लाख सुख़न इज़्तिराब में
बैठे भरे हुए हैं ख़ुम-ए-मय की तरह हम
ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ
हैं दहन ग़ुंचों के वा क्या जाने क्या कहने को हैं
जो पास-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत कहीं यहाँ बिकता
न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से
वो कौन है जो मुझ पे तअस्सुफ़ नहीं करता
पिला मय आश्कारा हम को किस की साक़िया चोरी
बज़्म में ज़िक्र मिरा लब पे वो लाए तो सही