बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(826) Peoples Rate This
नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा
बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई
तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी
दुकान-ए-हुस्न में मिलती नहीं मता-ए-वफ़ा
दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
बैठे भरे हुए हैं ख़ुम-ए-मय की तरह हम
क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं
मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
एहसान ना-ख़ुदा का उठाए मिरी बला
कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे
तू भला है तो बुरा हो नहीं सकता ऐ 'ज़ौक़'
वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें