दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले
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बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'
इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुख़न
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए
हक़ ने तुझ को इक ज़बाँ दी और दिए हैं कान दो
ज़ख़्मी हूँ तिरे नावक-ए-दुज़-दीदा-नज़र से
कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है
क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
निगह का वार था दिल पर फड़कने जान लगी
दिखाने को नहीं हम मुज़्तरिब हालत ही ऐसी है