क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता
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ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई
बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई
वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
नाज़ुक-कलामियाँ मिरी तोड़ें अदू का दिल
फिर मुझे ले चला उधर देखो
देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता
दिखाने को नहीं हम मुज़्तरिब हालत ही ऐसी है
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत