फिर मुझे ले चला उधर देखो
दिल-ए-ख़ाना-ख़राब की बातें
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ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा
लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले
गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की सब रस्में
नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुनिया-दार
अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
रुलाएगी मिरी याद उन को मुद्दतों साहब
याँ लब पे लाख लाख सुख़न इज़्तिराब में
इक सदमा दर्द-ए-दिल से मिरी जान पर तो है
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले