निकालूँ किस तरह सीने से अपने तीर-ए-जानाँ को
न पैकाँ दिल को छोड़े है न दिल छोड़े है पैकाँ को
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दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से
तू भला है तो बुरा हो नहीं सकता ऐ 'ज़ौक़'
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर
दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे
वो कौन है जो मुझ पे तअस्सुफ़ नहीं करता
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
फिर मुझे ले चला उधर देखो
लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले
आँखें मिरी तलवों से वो मिल जाए तो अच्छा
तू जान है हमारी और जान है तो सब कुछ
याँ लब पे लाख लाख सुख़न इज़्तिराब में
बज़्म में ज़िक्र मिरा लब पे वो लाए तो सही