एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
बूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई
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दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे
कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे
ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'
सज्दे में उस ने हम को आँखें दिखा के मारा
क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
मोअज़्ज़िन मर्हबा बर-वक़्त बोला
तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे
बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला