एहसान ना-ख़ुदा का उठाए मिरी बला
कश्ती ख़ुदा पे छोड़ दूँ लंगर को तोड़ दूँ
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न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से
जो पास-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत कहीं यहाँ बिकता
सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
मज़े जो मौत के आशिक़ बयाँ कभू करते
तू जान है हमारी और जान है तो सब कुछ
ये इक़ामत हमें पैग़ाम-ए-सफ़र देती है
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है
अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई
नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुनिया-दार
दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में