हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे
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रहता सुख़न से नाम क़यामत तलक है 'ज़ौक़'
मार कर तीर जो वो दिलबर-ए-जानी माँगे
दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से
जो कहोगे तुम कहेंगे हम भी हाँ यूँ ही सही
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर
बज़्म में ज़िक्र मिरा लब पे वो लाए तो सही
मिरे सीने से तेरा तीर जब ऐ जंग-जू निकला
बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
तेरे आफ़त-ज़दा जिन दश्तों में अड़ जाते हैं
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे