हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले
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अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले
कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
ख़ूब रोका शिकायतों से मुझे
हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का
चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए
बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई
बा'द रंजिश के गले मिलते हुए रुकता है दिल
सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है