बा'द रंजिश के गले मिलते हुए रुकता है दिल
अब मुनासिब है यही कुछ मैं बढ़ूँ कुछ तू बढ़े
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हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से
जो कुछ कि है दुनिया में वो इंसाँ के लिए है
जिन को इस वक़्त में इस्लाम का दावा है कमाल
क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए
ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
दुकान-ए-हुस्न में मिलती नहीं मता-ए-वफ़ा
तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से
कोई कमर को तिरी कुछ जो हो कमर तो कहे
सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर