तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से
कि जारी फ़ैज़ भी है और झुकी जाती है गर्दन भी
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले
आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई
सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ'
बाग़-ए-आलम में जहाँ नख़्ल-ए-हिना लगता है
मोअज़्ज़िन मर्हबा बर-वक़्त बोला
दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से
न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता
ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में