तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी
हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके
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पीर-ए-मुग़ाँ के पास वो दारू है जिस से 'ज़ौक़'
जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर
कोई कमर को तिरी कुछ जो हो कमर तो कहे
वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले
कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है
कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे
नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुनिया-दार
बलाएँ आँखों से उन की मुदाम लेते हैं
क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद