अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे
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हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का
हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है
इक सदमा दर्द-ए-दिल से मिरी जान पर तो है
कल जहाँ से कि उठा लाए थे अहबाब मुझे
बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई
दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे
ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
बाक़ी है दिल में शैख़ के हसरत गुनाह की
उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है
हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें
दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से
ऐ शम्अ तेरी उम्र-ए-तबीई है एक रात