ऐ शम्अ तेरी उम्र-ए-तबीई है एक रात
हँस कर गुज़ार या इसे रो कर गुज़ार दे
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(953) Peoples Rate This
बैठे भरे हुए हैं ख़ुम-ए-मय की तरह हम
हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का
अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
मार कर तीर जो वो दिलबर-ए-जानी माँगे
दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से
निगह का वार था दिल पर फड़कने जान लगी
रहता सुख़न से नाम क़यामत तलक है 'ज़ौक़'
निकालूँ किस तरह सीने से अपने तीर-ए-जानाँ को
तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से
गया शैतान मारा एक सज्दा के न करने में