गया शैतान मारा एक सज्दा के न करने में
अगर लाखों बरस सज्दे में सर मारा तो क्या मारा
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आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई
उठते उठते मैं ने इस हसरत से देखा है उन्हें
राहत के वास्ते है मुझे आरज़ू-ए-मर्ग
कहाँ तलक कहूँ साक़ी कि ला शराब तो दे
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
बा'द रंजिश के गले मिलते हुए रुकता है दिल
हैं दहन ग़ुंचों के वा क्या जाने क्या कहने को हैं
वो कौन है जो मुझ पे तअस्सुफ़ नहीं करता
कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए
सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाएदार का
तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से