नज़ीर बनारसी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर बनारसी
नाम | नज़ीर बनारसी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Banarasi |
जन्म की तारीख | 1909 |
मौत की तिथि | 1996 |
साहिल पे अगर मिरा सफ़ीना आ जाए
रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ
पेशानी पे सय्याल नगीना क्यूँ है
मालूम कि इंसान किसे कहते हैं
मय-ख़्वारों से जब दूर नज़र आएगी
लिल्लाह मिरी सोज़िश-ए-पैहम को न छेड़
किस तरह से आई है जमाही तौबा
हर साँस में इक हश्र बपा है वाइ'ज़
ज़रा दम तो ले ले तूफ़ाँ कि थका है रास्ते का
मिरे टूटे हुए दिल की सदा से खेलने वाले
मिरा मन है शहर-ए-गोकुल की तरह से साफ़-सुथरा
खुलती हैं वो मस्त आँखें हंगाम-ए-सहर ऐसे
करम जब आम है साक़ी तो फिर तख़सीस ये कैसी
हिन्द के मय-ख़ाने से इक साथ उठे दो बादा-ख़्वार
हमारे अहल-ए-चमन हम से सरगिराँ तो नहीं
ऐ दाना-हा-ए-गंदुम देखो न मुस्कुरा के
बेबादा भी ग़म से दूर हो जाता हूँ
बढ़ता हुआ हौसला न टूटे दिल का
ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में
रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे
जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया