खुलती हैं वो मस्त आँखें हंगाम-ए-सहर ऐसे
तालाब में रातों को खिलते हों कँवल जैसे
उस तरह से हँसती हैं मासूम तमन्नाएँ
जिस तरह से बच्चों के हाथों में नए पैसे
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हमारे अहल-ए-चमन हम से सरगिराँ तो नहीं
करम जब आम है साक़ी तो फिर तख़सीस ये कैसी
आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
मिरे टूटे हुए दिल की सदा से खेलने वाले
दीवाली
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
किस तरह से आई है जमाही तौबा
बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया
और तो कुछ न हुआ पी के बहक जाने से
अक्सर इस तरह से भी रात बसर होती है