मिरे टूटे हुए दिल की सदा से खेलने वाले
दुआ अपने लिए माँग अब दुआ से खेलने वाले
तुझे भी एक दिन एहसास-ए-तन्हाई रुला देगा
अकेले बैठ कर अपनी अदा से खेलने वाले
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आह गाँधी
तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए
करम जब आम है साक़ी तो फिर तख़सीस ये कैसी
दिन ढला जाता है शाम आती है घबराता हूँ मैं
हर साँस में इक हश्र बपा है वाइ'ज़
रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ
अक्सर इस तरह से भी रात बसर होती है
ईद मिलन
ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
किस तरह से आई है जमाही तौबा
हमारे अहल-ए-चमन हम से सरगिराँ तो नहीं