एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
मैं ये समझा भूलने वाले को मैं याद आ गया
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होली
गंगा के किनारे
किस तरह से आई है जमाही तौबा
बढ़ता हुआ हौसला न टूटे दिल का
ऐ दाना-हा-ए-गंदुम देखो न मुस्कुरा के
बेबादा भी ग़म से दूर हो जाता हूँ
दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए
आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
प्यारा हिन्दोस्तान
एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक