बढ़ता हुआ हौसला न टूटे दिल का
तू दायरा महदूद न कर मंज़िल का
मुस्तक़बिल-ए-ज़र्रीं पे बहुत नाज़ न कर
है हाल ही वो भी किसी मुस्तक़बिल का
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
रुख़्सत अभी ज़ुल्मतों का डेरा कर दूँ
मय-ख़्वारों से जब दूर नज़र आएगी
पंद्रह अगस्त
जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
इस वक़्त ग़ज़ल की बात न कर
ऐ दाना-हा-ए-गंदुम देखो न मुस्कुरा के
दीवाली और दीवाली मिलन
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
दिन ढला जाता है शाम आती है घबराता हूँ मैं