ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
मिरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी
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छब्बीस जनवरी
वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
दिल की उजड़ी हुई हालत पे न जाए कोई
जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
'प्रेमचंद' एक था एक से इक जहाँ बन गया
प्यारा हिन्दोस्तान
एक झोंका इस तरह ज़ंजीर-ए-दर खड़का गया
दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
आह गाँधी
आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी
उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में