दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
लाओ तेशा एक दरिया दूसरा पैदा करें
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
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हर साँस में इक हश्र बपा है वाइ'ज़
जो ग़ज़ल महलों से चल कर झोंपड़ों तक आ गई
वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
दिन ढला जाता है शाम आती है घबराता हूँ मैं
साहिल पे अगर मिरा सफ़ीना आ जाए
हम उन के दर पे न जाते तो और क्या करते
बेबादा भी ग़म से दूर हो जाता हूँ
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
सुना है कि उन से मुलाक़ात होगी
तूफ़ाँ से थपेड़ों के सहारे निकल आए
ऐ दाना-हा-ए-गंदुम देखो न मुस्कुरा के
छब्बीस जनवरी