पेशानी पे सय्याल नगीना क्यूँ है
गिर्दाब में हुस्न का सफ़ीना क्यूँ है
नादिम हूँ मुझे अपनी नदामत तस्लीम
ये आप के माथे पे पसीना क्यूँ है
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साहिल पे अगर मिरा सफ़ीना आ जाए
गंगा के किनारे
कितनी शर्मीली लजीली है हवा बरसात की
जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
ज़रा दम तो ले ले तूफ़ाँ कि थका है रास्ते का
हिन्द के मय-ख़ाने से इक साथ उठे दो बादा-ख़्वार
इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
निगाह ओ दिल भी क़दम की तरह मिला के चले
दीवाली और दीवाली मिलन
रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया