रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
न इधर होती है ज़ालिम न उधर होती है
Habib Jalib
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Javed Akhtar
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Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
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ऐ दाना-हा-ए-गंदुम देखो न मुस्कुरा के
हैं यूँ मस्त आँखों में डोरे गुलाबी
छब्बीस जनवरी
उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में
और तो कुछ न हुआ पी के बहक जाने से
मय-ख़्वारों से जब दूर नज़र आएगी
सुना है कि उन से मुलाक़ात होगी
ये जल्वा-गह-ए-ख़ास है कुछ आम नहीं है
एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई
जी में आता है कि दें पर्दे से पर्दे का जवाब
मस्जिद-ओ-मंदिर कलीसा सब में जाना चाहिए
इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ