मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे
वो समझ सकें तो आँसू न समझ सकें तो पानी
Jaun Eliya
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जब से वो कह के गए हैं कि अभी आते हैं
पंद्रह अगस्त
पेशानी पे सय्याल नगीना क्यूँ है
मय-ख़्वारों से जब दूर नज़र आएगी
बढ़ता हुआ हौसला न टूटे दिल का
कितनी शर्मीली लजीली है हवा बरसात की
दिन ढला जाता है शाम आती है घबराता हूँ मैं
बेबादा भी ग़म से दूर हो जाता हूँ
वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
अक्सर इस तरह से भी रात बसर होती है
होली
आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी