नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ 'ज़ौक़'
उस ने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाकत वाले
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तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे
किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा
दरिया-ए-अश्क चश्म से जिस आन बह गया
फिर मुझे ले चला उधर देखो
बज़्म में ज़िक्र मिरा लब पे वो लाए तो सही
पिला मय आश्कारा हम को किस की साक़िया चोरी
बे-क़रारी का सबब हर काम की उम्मीद है
उठते उठते मैं ने इस हसरत से देखा है उन्हें
जो पास-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत कहीं यहाँ बिकता
उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है
लेते हैं समर शाख़-ए-समरवर को झुका कर