मैं कैसे तय करूँ बे-सम्त रास्तों का सफ़र
कहाँ है शहर-ए-तमन्ना कोई पता तो दे
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न आए मेरे होंटों तक जो पैमाना नहीं आता
हसीं तुझ से तिरा हुस्न-ए-तलब था
जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है
तेरा होना न मान कर गोया
दिल का सुकून रिज़्क़ के हंगामे खा गए
लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं
जो भी देना है वो ख़ुदा देगा
देख लिया क्या जाने शाम की सूनी आँखों में
दुनिया तेरे नाम से मुझ को पहचाने
रू-पोश आँख से कोई ख़ुशबू लिबास है
सफ़र का रुख़ बदल कर देखता हूँ
सीने में जब दर्द कोई बो जाता है