ज़रा देखें तो दुनिया कैसे कैसे रंग भरती है
चलो हम अपने अफ़्साने का ग़म उनवान रखते हैं
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न आए मेरे होंटों तक जो पैमाना नहीं आता
वक़्त-ए-रुख़्सत वो आँसू बहाने लगे
नवाज़ा है मुझे पत्थर से जिस ने
राज़-ए-हस्ती से आश्ना न हुआ
जो छू लूँ आसमाँ पाँव की धरती खींच लेता है
लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ मैं
बे-दीन हुए ईमान दिया हम इश्क़ में सब कुछ खो बैठे
नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर
दीवाना कर के मुझ को तमाशा किया बहुत
हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता