बदनाम Poetry (page 2)

पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लूटा है मुझे उस की हर अदा ने

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का

वहीद क़ुरैशी

ग़म के हाथों शुक्र-ए-ख़ुदा है इश्क़ का चर्चा आम नहीं

वहीद क़ुरैशी

हम को मंज़ूर तुम्हारा जो न पर्दा होता

वहीद अख़्तर

मुमकिन नहीं है अपने को रुस्वा वफ़ा करे

वफ़ा बराही

शहर से एक तरफ़ दूर बहुत

तिलोकचंद महरूम

तुम अच्छे थे तुम को रुस्वा हम ने किया

तौसीफ़ तबस्सुम

कौन से दिल से किन आँखों ये तमाशा देखूँ

तारिक़ राशीद दरवेश

अपने दुखों का हम ने तमाशा नहीं किया

तारिक़ मतीन

मुझे भी नीम के जैसा न कर दे

तनवीर गौहर

इंतिज़ार

तनवीर अंजुम

इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे

तल्हा रिज़वी बारक़

कहीं रुस्वा न हों रंगीनियाँ दर्द-ए-मोहब्बत की

ताजवर नजीबाबादी

मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए

ताजवर नजीबाबादी

फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं

ताबिश मेहदी

जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है

ताबिश मेहदी

एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दौर-ए-तूफ़ाँ में भी जी लेते हैं जीने वाले

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

तुम्हारे हिज्र में रहता है हम को ग़म मियाँ-साहिब

ताबाँ अब्दुल हई

कुछ ऐसा भी तो हो जाए कभी ऐसा करे कोई

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

वो जब आप से अपना पर्दा करें

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

चैन कब आता है घर में तिरे दीवाने को

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

तीर पे तीर निशानों पे निशाने बदले

सय्यद आरिफ़ अली

फ़साद-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र हासिल-ए-तमाशा देख

सय्यद अमीन अशरफ़

आदमी जब ख़ून का प्यासा हुआ

सय्यद अहसन जावेद

शब-ए-विसाल मज़ा दे रही है 'तू' तेरी

सुरूर जहानाबादी

लिख रहा हूँ हर्फ़-ए-हक़ हर्फ़-ए-वफ़ा किस के लिए

सुलतान रशक

और कर लेंगे वो क्या अब हमें रुस्वा कर के

सुलैमान अहमद मानी

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