तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने
अपनी चाहत पे दायरा रक्खा
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हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे
दर्द को अश्क बनाने की ज़रूरत क्या थी
तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा
मुझ सा कोई जहान में नादान भी न हो
ये रात दिन का बदलना नज़र में रहता है
ऐसे लगता है कि कमज़ोर बहुत है तू भी
हम कि चेहरे पे न लाए कभी वीरानी को
वक़्त तो वक़्त है रुकता नहीं इक पल के लिए
तू रुके या न रुके फ़ैसला तुझ पर छोड़ा
मौत इक दरिंदा है ज़िंदगी बला सी है
उदास मौसम के रतजगों में
हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना