तू रुके या न रुके फ़ैसला तुझ पर छोड़ा
दिल ने दर खोल दिए हैं तिरी आसानी को
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ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या
मुझ सा कोई जहान में नादान भी न हो
हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना
हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे
वक़्त तो वक़्त है रुकता नहीं इक पल के लिए
तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा
मौत इक दरिंदा है ज़िंदगी बला सी है
हम कि चेहरे पे न लाए कभी वीरानी को
ऐसे लगता है कि कमज़ोर बहुत है तू भी
ये रात दिन का बदलना नज़र में रहता है
किसी भी वहम को ख़ुद पर सवार मत करना