मुझ सा कोई जहान में नादान भी न हो
कर के जो इश्क़ कहता है नुक़सान भी न हो
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तू रुके या न रुके फ़ैसला तुझ पर छोड़ा
ये रात दिन का बदलना नज़र में रहता है
ऐसे लगता है कि कमज़ोर बहुत है तू भी
हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे
हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना
मौत इक दरिंदा है ज़िंदगी बला सी है
अब्र उतरा है चार-सू देखो
तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने
वक़्त तो वक़्त है रुकता नहीं इक पल के लिए
दश्त की प्यास बढ़ाने के लिए आए थे
वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी