अपनी सोचें सफ़र में रहती हैं
उस को पाने की जुस्तुजू देखो
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तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने
हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना
उदास मौसम के रतजगों में
ऐसे लगता है कि कमज़ोर बहुत है तू भी
हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे
ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या
मुझ सा कोई जहान में नादान भी न हो
तू रुके या न रुके फ़ैसला तुझ पर छोड़ा
हम कि चेहरे पे न लाए कभी वीरानी को
वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी
वक़्त तो वक़्त है रुकता नहीं इक पल के लिए
दर्द को अश्क बनाने की ज़रूरत क्या थी