ऐसे लगता है कि कमज़ोर बहुत है तू भी
जीत कर जश्न मनाने की ज़रूरत क्या थी
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तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने
ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या
वो भी बिगड़ा, हुई रुस्वाई भी
तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा
तू रुके या न रुके फ़ैसला तुझ पर छोड़ा
दश्त की प्यास बढ़ाने के लिए आए थे
क्यूँ न हम सोच के साँचे में ही ढल कर देखें
उदास मौसम के रतजगों में
किसी भी वहम को ख़ुद पर सवार मत करना
मुझ सा कोई जहान में नादान भी न हो
हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे