आँखों में तिरे जल्वे लिए फिरते हैं हम लोग
हम लोग कि रुस्वा सर-ए-बाज़ार हुए हैं
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(989) Peoples Rate This
मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा
उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं
ज़हर है मेरे रग-ओ-पै में मोहब्बत शायद
आ मिरे चाँद रात सूनी है
एक भी आफ़्ताब बन न सका
है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी
वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ
जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है
वादी-ए-नील
पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए
हाए ये तवील ओ सर्द रातें