आ मिरे चाँद रात सूनी है
बात बनती नहीं सितारों से
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मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा
पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए
जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है
जो हुरूफ़ लिख गया था मिरी आरज़ू का बचपन
वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ
ख़बर
ज़हर है मेरे रग-ओ-पै में मोहब्बत शायद
तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया
बातों से सिवा होती है कुछ वहशत-ए-दिल और
आँखों में तिरे जल्वे लिए फिरते हैं हम लोग
उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं
मैं लिपटता रहा हूँ ख़ारों से